स्वतंत्र भारत
जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब वह न केवल अपनी दास्ता की स्थिति से ही मुक्त हुआ; बल्कि उसे सामाजिक, आर्थिक व राजनितिक परिवर्तनों से भरे एक विश्व में प्रवेश किया। सत्ता ने हाथ बदले, पुराने मूल्यों से चिपके पूर्वाग्रह और विकारोत्पादक संस्थाएँ असल में अक्षत एवं अछूती बनी रहीं। ये पूर्वाग्रह थे-श्रम से अरुचि, परजीवीपन को गौरवपूर्ण समझना, बातों के जमाखरच के प्रति आकर्षण, किसी भी कीमत पर रोटी और पैसा पा लेने की होड़ तथा मुक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हुए भी, किसी भी तरह का साहस सँजो पाने में भय की प्रवृत्ति। अतः बच्चों के व्यक्तित्व के स्वस्थ विकास के लिए वातावरण में नई ऊष्मा, ने प्राणों का संचार किया जाना आवशयक है।
When India got independence, it was not only freed from its Dasta status; Rather, he entered a world full of social, economic and political changes. Power changed hands, prejudices clinging to old values and destructive institutions remained virtually intact and untouched. These prejudices were distaste for labour, taking pride in parasitism, fascination for a plethora of things, vying for bread and money at any cost, and in finding any kind of courage, even while talking lofty words of salvation. fear tendency. Therefore, for the healthy development of the personality of the children, it is necessary to infuse new heat, life into the atmosphere.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...