दायित्वबोध
बचपन से ही एकमेव-एकता के सूत्र में पुरे परिवार को चलाना निश्चित दिशा तो देता ही है, साथ ही 'एकता' की प्रबलता को और भी प्राकट्य करता है। मिल-बाँटकर कार्य करना, सामूहिक रूप से भोजन करना, इन सभी संस्कारों का उदय होता रहता है। दुःख भी बाँटना है और सुख भी। संयुक्त परिवार में दायित्वबोध एवं जिम्मेदारी का अनुभव होता है। एकदूसरे के लिए दायित्वों को समझना संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी देन है। मुंडन से लेकर विवाह तक के संस्कारों का स्वरूप अद्भुत है। इसकी चर्चा गाँव से लकर शहरों में बही होती है। सकारात्मकता संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी देन है। यह भाव प्रारंभ से ही पनपने लगता है।
Running the whole family in the formula of one-unity from childhood not only gives definite direction, but also further manifests the strength of 'unity'. Working together, sharing food, eating collectively, all these samskaras continue to rise. There is sorrow to be shared as well as happiness. There is a sense of responsibility and responsibility in a joint family. Understanding the responsibilities for each other is the biggest gift of a joint family. The nature of the rituals from mundan to marriage is amazing. It is discussed from village to city. Positivity is the biggest gift of a joint family. This feeling starts from the very beginning.
यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...