अवांछनीय प्रवृत्तियाँ
इन दिनों हमारे समाज में उनके विकृतियाँ और अवांछनीय प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं। झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, छल-छद्म जैसे अनेकानेक अनुचित कार्य इन दिनों आम हो गए हैं और प्रेम, आत्मीयता, एकता के तत्व घट रहे हैं। स्वार्थपरता मुख्य होती जा रही है। मनुष्य के अंतःकरण से प्रेम और संवेदना के भाव लुप्त हो रहे हैं। दूसरे की पीड़ा और पतन से हमें कोई मतलब नहीं। अपने उत्तरदायित्वों से भागने की महामारी के कारण ही विभिन्न विकृतियाँ उभरकर आती हैं। आंतरिक स्तर में गिरावट का ही यह परिणाम है कि बाहरी सुख-सुविधाओं में अभिवृद्धि होने के बावजूद भी मनुष्य को पहले से ज्यादा परेशान देखा जा सकता है। प्रकृति ने नारी को ऐसी विशेषताएँ प्रदान की हैं कि वह उन विशेषताओं के बल पर समाज में व्याप्त समस्याओं का सहज ही समाधान कर सकती है।
These days their distortions and undesirable tendencies are flourishing in our society. Many unfair acts like lies, dishonesty, corruption, bribery, deceit have become common these days and the elements of love, intimacy, unity are decreasing. Selfishness is becoming prominent. The feelings of love and compassion are disappearing from the heart of man. We do not care about the suffering and downfall of others. It is because of the epidemic of running away from our responsibilities that various distortions emerge. It is the result of the decline in the internal level that despite the increase in external comforts, man can be seen as more troubled than before. Nature has given such characteristics to the woman that she can easily solve the problems prevailing in the society on the strength of those characteristics.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...