स्वाद-लिप्सा
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि प्रकृति के साहचर्य में रहने वाले अन्य प्राणी कदचित् ही बीमार पड़ते हैं। जंगल में रहने वाले शेर, हाथी इत्यादि को किसने अस्पताल के चक्कर लगाते देखा है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि अन्य प्राणी उनके शरीर के लिए आवश्यक आहार व खाद्य पदार्थों को उनके नैसर्गिक या प्राकृतिक रूप में ही ग्रहण करते हैं। यह एक स्वाभाविक एवं विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है। मनुष्य इस साधारण से तथ्य को भूलकर स्वाद-लिप्सा के कारण अनगिनत मसलों, खाना पकाने के तौर-तरीकों को अपनाता है और परिणामस्वरूप ऐसी बिमारियों को जीवन भर के लिए आमंत्रित कर बैठता है, जिनको सहजता से एक संयमित आहारशैली अपनाकर अपने जीवन में आने से रोका जा सकता था।
It is a well-known fact that other animals living in the company of nature rarely fall ill. Who has seen the lion, elephant, etc. living in the forest, making rounds of the hospital? One of the main reasons for this is that other living beings take the necessary food and food items for their body in their natural or natural form. This is a natural and scientific process. Forgetting this simple fact, man adopts countless issues, cooking methods due to taste and craving and as a result invites such diseases for a lifetime, which can easily come into his life by adopting a controlled diet. could have been stopped.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...