जीवन निर्वाह
स्वावलंबन संकाय का उद्देश्य मात्र कुटरी उद्योगों-गृह उद्योगों के प्राक्षिण तक सीमित नहीं है, अपितु ऐसी राष्ट्रव्यापी मानसिकता का निर्माण करना है, जो श्रम करने में संकोच न करे। श्रम की प्रतिष्ठा को स्वयं की प्रतिष्ठा एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा माने। आज के समय में स्वाभिमानपूर्वक स्वावलम्बी जीवन-निर्वाह की सुविधा एवं क्षमता हर व्यक्ति तक पहुँचाना आवश्यक हो गया है। इसके बिना न तो व्यक्तिगत जीवन में सुनिश्चितता सम्भव है और न सामाजिक कार्यों में स्थिरतापूर्वक योगदान किया जा सकता है, आज के दौर में भौतिक प्रगति के साथ अर्थकेन्द्रित जीवनपद्धति विकसित और स्थापित हो चुकी है।
The objective of Swavalamban Faculty is not limited to the training of cottage industries and home industries, but it is to create such a nationwide mentality, which does not hesitate to work. Consider the prestige of labor as your own prestige and the prestige of the nation. In today's time, it has become necessary to reach every person the facility and ability to live a self-dependent life with self-respect. Without this, neither assurance is possible in personal life nor contribution to social work can be done stably, in today's world, with material progress, an economic-oriented way of life has been developed and established.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...