कर्म बंधन
जिव्हा खाने का, बोलने का दो कार्य करती है। इसलिए प्रकृति ने दो होठों और बत्तीस दाँतों के बीच इसे जबकि कान, नाक, त्वचा और आँख के लिए प्रकृति ने ऐसे पहरेदार नहीं रखे। बिना सोचे-समझे बोलकर हम घोर कर्म बंधन बांध लेते हैं। वचन संयम साधने से मन संयम सहज हो जाता है और वचन शक्ति का दुरूपयोग नहीं होता। ज्ञानियों ने वचन शक्ति को पहचाना है। वाणी की शक्ति को जानने पहचानने वाला इहभव-परभव दोनों को कल्याणकारी बना लेता है, उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। समाज और घर परिवार वह सबका प्रिय बन जाता है।
The tongue does the two functions of eating and speaking. That's why nature has not kept such guards between the two lips and thirty-two teeth while for the ears, nose, skin and eyes. By speaking without thinking, we bind ourselves with terrible karma. Mind restraint becomes easy by practicing word restraint and there is no misuse of word power. The wise have recognized the power of words. The one who knows and recognizes the power of speech makes both Ihbhav and Parbhav beneficial, his reputation increases. Society and family, he becomes everyone's favorite.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...