दिशाधारा
व्रत यों तो आत्मिक होते हैं। 'व्रत' शब्द से तात्पर्य ही है - आत्मशोधन के निमित्त किए गए बुद्धिसंगत उपयों को दृढ़तापूर्वक अपनाए रहना। उनका प्रयोजना दोष-दुर्गुणों, कषाय-कल्मषों का निष्कासन एवं स्वभाव-संस्कारों का उदात्तीकरण है। अनौचित्य को दृढ़तापूर्वक छोड़ना और अभीष्ट को संकल्पपूर्वक अवधारणा करना, यही है व्रतशीलता। इसे व्रतबंधन भी कहा गया है। अंतरंग पर छाए हुए मलिनता के कुहासे को हटा देने से आत्मज्योति की आभा उभरती है। उसी के प्रकाश में दिशाधारा का अवलंबन करने पर वास्तविक और सर्वतोमुखी प्रगति बन पड़ती है।
These fasts are spiritual in nature. The meaning of the word 'Vrat' is - to firmly adopt the rational measures taken for the sake of self-purification. Their purpose is the removal of vices, astringents and sublimation of nature and rituals. Relinquishing unrighteousness firmly and perceiving the desired with determination, this is fasting. It is also called fasting. The aura of self-light emerges by removing the fog of filth that has engulfed the intimate. Real and all-round progress is made on following the direction in its light.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...