प्रखर एवं प्रामाणिक
अपने दृष्टिकोण को समझना चाहिए और निर्णय लेना चाहिए कि यह अपने से बन पड़ रहा है या नहीं ? अगर नहीं हो पा रहा है तो इसका निवारण किस प्रकार हो सकता है ? इस प्रकार का निर्धारण जीवन-साधना के साधकों के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है। जो अपनी कमियों को अनदेखा करता है और महान बनने की बात सोचता है, वह प्रखर एवं प्रामाणिक नहीं बन सकता। कोई भी योजना बेकार सिद्ध उससे यह आशा नहीं की जा सकती कि वह किसी ऐसी स्थिति में पहुँच सकेगा, जिसमें अपने को गर्व-गौरव करने का अवसर मिल सके। साथ ही औरों से सहयोग-सम्मान आदि प्राप्त भी न हो सकेगा।
You should understand your point of view and decide whether it is being formed by yourself or not? If it is not possible, how can it be resolved? This type of determination is essentially necessary for the seekers of the spiritual practice of life. One who ignores his shortcomings and thinks of becoming great, cannot become sharp and authentic. No plan proves to be useless, it cannot be expected from him that he will be able to reach a position in which he can get an opportunity to take pride and pride. Also, you will not be able to get cooperation-respect etc. from others.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...