सत्संग
सत्संग का महत्व क्या है ? सत् का संग, अर्थात् सत्य का साथ। सत् अर्थात् ईश्वर और संग का अर्थ है सानिध्य, जहाँ ईश्वर का सानिध्य मिले वही सत्संग है, क्योंकि जहाँ सत्य है वहीँ ईश्वर है, जहाँ सद्विचार है वहीँ ईश्वर की भावनाएं हैं। इसलिए संत जिन्हें ईश्वर का सगुण रूप कहा गया है उनका सानिध्य सर्वश्रेष्ठ सत्संग है। जिस प्रकार से मानव शरीर के पोषण के लिए भोजन आवश्यक होता है, उसी प्रकार मानव आत्मा के पोषण और संवर्द्धन हेतु सत्संग का महत्व है।
सत्संग अर्थात् सद्विचारों का संग। सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्रीरामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में प्राप्त नहीं होता, सत्संग आनंद और कल्याण की जड़ है, सत्संग की सिद्धि अथवा प्राप्ति ही फल है और साधन तो फूल के समान है।
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...