शिक्षा एक दीपक
ज्ञान के संपर्क की अवज्ञा करना, आगे बढ़ने का मार्ग न खोजना, पेड़ की जड़ों को बढ़ने से स्वतः रोक देने जैस ही है ? और यही कारण है कि शिक्षित व्यक्ति पढ़-लिख लेने के बावजूद भी यथास्थिति में ही बने रहते हैं और अपने व्यक्तित्व को ऊँचा नहीं उठने देते। ज्ञान यदि प्राप्त नहीं किया जाएगा तो व्यक्तित्व का विकास कभी भी नहीं हो पाएगा। इसलिए शिक्षित व्यक्तियों को चाहिए कि वे मात्र डिग्री लेकर ही कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने का संतोष न कर लें, वरन प्राप्त की गई शिक्षा को एक दीपक समझे, जिसकी रोशनी में आगे बढ़ते रहना है, अपनी ज्ञान-संपदा को बढ़ाते चलें और उस संपदा के माध्यम से व्यक्तित्व को समृद्ध, समर्थ व संपन्न बनाकर एक आदर्श प्रस्तुत करें।
Is disobeying the contact of knowledge, not finding a way forward, the same as automatically stopping the roots of a tree from growing? And this is the reason why educated people, despite being educated and writing, remain in the status quo and do not allow their personality to rise. If knowledge is not acquired then the development of personality will never happen. Therefore, educated people should not be satisfied with achieving any great achievement by taking a degree, but consider the education received as a lamp, in whose light they have to keep moving forward, keep on increasing their knowledge-wealth and that wealth. Present an ideal through making the personality rich, capable and prosperous.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...