ईश्वरीय आलोक
ध्यान मन की लहरों को शांत करना है, चित्त की लहरों को शांत करना है, मन को इच्छाओं से मुक्त करना है, विचारों से मुक्त करना है, वासनाओं से मुक्त करना है, संस्कारों से मुक्त करना है। मन को ख्यालों से खाली करना है। मन के इच्छाओं, वासनाओं, विचारों, भावों, संस्कारों से मुक्त होते ही अर्थात मन के समाप्त होते ही उसी पल हमारे अन्तस् में, हमारी आत्मा में समाधि की महान घटना घट जाती है। हमें हमारी आत्मा में ही प्रकाश रूप परमात्मा के दर्शन होने लगते हैं। हमारे अंदर आनंद का अजस्त्र स्त्रोत फूट पड़ता है। हमारा अंतस् ईश्वरीय आलोक से आलोकित हो उठता है।
Meditation is to calm the waves of the mind, to calm the waves of the mind, to free the mind from desires, to free it from thoughts, to free it from desires, to free it from samskaras. The mind has to be cleared of thoughts. As soon as the mind is freed from desires, desires, thoughts, feelings, samskaras, that is, as soon as the mind ends, the great event of samadhi takes place in our soul, at that very moment. We start seeing the divine form of light in our soul itself. The inexhaustible source of joy bursts within us. Our soul gets illuminated by the divine light.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...