विश्वरूप दर्शन
गीता का यह ग्यारहवाँ अध्याय भगवान के विश्वरूप दर्शन का है। इसमें भगवान ने अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराया है। अर्जुन कहता है - आपके अनुग्रह से, आपकी कृपा से आपने जो यह परमगुह्य ज्ञान मुझे दिया है, इससे मेरा मोह, मेरा अज्ञान चला गया है, यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि भगवान का उपदेश पूर्ण होने के बाद अठारहवें अध्याय के ६३वें श्लोक में अर्जुन ने कहा है कि मेरा मोह नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति प्राप्त हो गयी है। यहाँ जो हुआ कि यहाँ मोह विगत हुआ है, पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ है, यदि यहीं पर मोह पूर्णतः नष्ट हो गया होता तो गीता यहीं समाप्त हो गयी होती। आगे भगवान को सात और अध्याय कहने की आवश्यकता ही नहीं होती। भगवान यह समझ रहे थे कि अभी भी अर्जुन की स्थिति डाँवाडोल है और इसके मोह का निराकरण पूर्णतया नहीं हुआ है। यदि अर्जुन का मोह वास्तव में हट गया होता तो अर्जुन आगे कोई प्रश्न ही नही उठाता। विश्वरूप दर्शन की माँग ही नहीं करता। मोह के जाते ही स्वरूप की स्मृति आ जाती है। मन में कोई शंका, कुशंका रहती नहीं। अतः अभी अर्जुन कहता जरूर है, परन्तु अभी भी वह मोह - जाल से मुक्त नहीं हुआ है। यहाँ शब्द का संकेत भी बड़ा सुंदर है। अर्जुन कहता है कि मेरा मोह चला गया है, वह नष्ट नहीं हुआ है। जो चला गया है, वो लौटकर वापस भी आ सकता है, परन्तु नष्ट होने के बाद तो वापस आने का प्रश्न ही नहीं उठता।
This eleventh chapter of Gita is about the universal vision of God. In this, God has shown Arjuna his great form. Arjuna says - By your grace, by your grace, this very secret knowledge that you have given me, my delusion, my ignorance has gone, here one thing is worth noting that after the completion of the sermon of the Lord, in the 63rd verse of the Eighteenth Chapter In Arjuna has said that my delusion has been destroyed and I have attained memory. What happened here is that the delusion has passed, it has not been destroyed completely, if the delusion had completely destroyed here, then the Gita would have ended here. Further there is no need to call God seven more chapters. The Lord was understanding that Arjuna's condition is still shaky and his attachment has not been completely resolved. If Arjuna's fascination had really gone away, then Arjuna would not have raised any further questions. Vishwarup does not ask for darshan at all. As soon as the attachment goes, the memory of the form comes. There is no doubt or doubt in the mind. So now Arjun definitely says, but still he is not free from the trap of illusion. Here the sign of the word is also very beautiful. Arjun says that my delusion is gone, it is not destroyed. The one who has gone can also come back, but after being destroyed, the question of coming back does not arise.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...