वरेण्य
वरेण्य कहते हैं - श्रेष्ठ को वरण करने, ग्रहण करने योग्य को, धारण करने योग्य को। ईश्वरीय सत्ता में सभी तत्व हैं, जो मनुष्य के लिए उपयोगी हैं वे भी ओर जो अनुपयोगी हैं वे भी। इनमें से गायत्री द्वारा हम उन तत्वों को ग्रहण करते हैं; जो वरेण्य हैं, श्रेष्ठ हैं, ग्रहण करने योग्य हैं। धर्मं, कर्तव्य, अध्यात्म, सत्, चित्, आन्नद, सत्य, शिव, सुंदर की ओर जो तत्व हमें अग्रसर करते हैं, वे 'वरेण्य' हैं। श्रेष्ठता को अपने अंदर धारण करने से, श्रेष्ठता की ओर अभिमुख होने से, हमारी ईश्वरप्रदत्त श्रेष्ठता जाग पड़ती है और इस संसार में भरे हुए नानाविध पदार्थों में से केवल श्रेष्ठता को ही अपने लिए चुनते हैं।
Varenya says - to choose the best, to be accepted, to be possessed. The Divine Being has all the elements, those which are useful to man and those which are useless. Out of these through Gayatri we absorb those elements; Those who are varnyas, are superior, are worthy of being accepted. The elements which lead us towards Dharma, Duty, Spirituality, Sat, Chit, Ananda, Satya, Shiva, Sundar are 'Varenya'. By imbibing the superiority within ourselves, turning towards the superiority, our God-given superiority is awakened and we choose only the superiority for ourselves out of the many things that are filled in this world.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...