सद्विचारों का स्त्रोत
बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो दूसरों के विचारों को पढ़ते हैं, सुनते हैं, रटते हैं और फिर उन्हें हूबहू दोहरा कर भूल जाते हैं; क्योंकि वे विचारों को आत्मसात् नहीं करते। विचारों को ग्रहण करना और उन्हें बिना मनन के यथावात् दोहरा देना भी मनुष्य के विकास में बाधा के समान ही है। विचार तभी सार्थक होते हैं, जब वे मन-मस्तिष्क में अपनी जड़ जमा लेते हैं और हमारे जीवन का एक अंग बन जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अपने जीवन में विचारों को पहचानना जरूरी है कि हम अपने जीवन में विचारों को पहचानना सीखें, सद्विचारों को ग्रहण करना और उन्हें प्रश्रय देना सीखें, ताकि हमारा मन भी सद्विचारों का स्त्रोत बने और हम उन विचारों को अपने जीवन में साकार कर सकें।
There are many people who read, listen, memorize the thoughts of others and then forget them over and over again; Because they do not assimilate ideas. Accepting thoughts and repeating them as they are without contemplation is also an obstacle in the development of man. Thoughts are meaningful only when they take root in the mind and brain and become a part of our life. That is why it is important that we learn to recognize thoughts in our life, learn to accept and give shelter to good thoughts, so that our mind also becomes a source of good thoughts and we can realize those thoughts in our life. can do
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...