आत्मोद्धार का मार्ग
मनुष्य शरीर में मनुष्य योनि में जीव के पास जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर, परम आनंद, भगवत्प्राप्ति बड़े ही दुर्लभ अवसर होते हैं। जीव को विषय-भोगों से संपर्क तो मनुष्य योनि में भी होता है। उसे भौतिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधन जुटाने पड़ते हैं, उदरपूर्ति के साधन जुटाने पड़ते हैं, संतानोत्पति आदि कर्मों में भी लिप्त होना पड़ता है, पर अंतर यह है कि मनुष्य योनि में भौतिक जीवन की व्यवस्था करने तक ही स्वयं को सीमित किए रहने की विवशता नहीं है, मज़बूरी नहीं है, लाचारी नहीं। पेट, प्रजनन, परिवार आदि की आवश्यकता पूरी करने साथ-साथ आत्मोद्धार का मार्ग प्रशस्त कर लेने को उसके पास बड़े ही दुर्लभ अवसर हैं। मानवीय बुद्धि ऐसा सोच-समझ भी सकती है।
Being freed from the bondage of birth and death in the human body, in the human vagina, the ultimate bliss, attainment of God are very rare opportunities. The contact of the soul with the pleasures takes place even in the human vagina. He has to mobilize the means for fulfilling the needs of material life, has to mobilize the means of fulfillment of the stomach, has to be involved in activities like procreation of children, etc., but the difference is that man confines himself only to arranging material life in the vagina. There is no compulsion to live, no compulsion, no helplessness. He has very rare opportunities to fulfill the needs of stomach, reproduction, family etc. as well as paving the way for self-realization. Human intelligence can even think like this.
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यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बाइसवें मन्त्र का भाष्य करते हुए महर्षि ने लिखा है कि विद्वानों को ईश्वर की प्रार्थना सहित ऐसा अनुष्ठान करना चाहिए कि जिससे पूर्णविद्या वाले शूरवीर मनुष्य तथा वैसे ही गुणवाली स्त्री, सुख देनेहारे पशु, सभ्य मनुष्य, चाही हुई वर्षा, मीठे फलों से युक्त अन्न और औषधि हों तथा कामना पूर्ण...