प्रकृति का संरक्षण
हमें भी संवेदनशील होना चाहिए; क्योंकि संवेदनशील होकर ही हम प्रकृति की सच्ची सेवा कर सकते हैं, प्रकृति का संरक्षण कर सकते हैं और प्रकृति को प्रदूषणमुक्त रखने में अपना सब कुछ अर्पित, समर्प्रित कर सकते हैं। वास्तव में यही प्रकृति की पूजा; प्रकृति का सम्मान; प्रकृति का आदर; प्रकृति का सत्कार, जिसे हमने स्वयं व समष्टिगत हित में करना ही चाहिए। यही है प्रकृति के प्रति हमारी सच्ची पुष्पांजलि। साथ ही यह हमारा मानवीय कर्तव्य भी है, राष्ट्रीय कर्तव्य भी है और वैश्विक कर्तव्य भी है।
We should also be sensitive; Because only by being sensitive we can do true service to nature, we can protect nature and we can dedicate everything to keep nature pollution free. In fact this is the worship of nature; respect for nature; respect for nature; The hospitality of nature, which we must do in the interest of ourselves and the collective. This is our true tribute to nature. At the same time it is also our human duty, national duty as well as global duty.
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प्रशंसा और महत्त्व आप रिश्तों को उनके महत्वपूर्ण होने का अहसास दिला सकते हैं। हम सब महत्त्व की भावना के भूखे होते हैं। पति और पत्नी के बीच झगड़ों की मुख्य वजह होती है, प्रशंसा का अभाव। उनकी दिलचस्पी आलोचना में होती है, क्योंकि इससे उनका अहंकार पोषित होता है। हम अक्सर अपने पति-पत्नी या अपने किसी नजदीकी रिश्ते को यह बताने की जरूरत नहीं...